Saturday 15 July 2017

----- ॥ टिप्पणी ११ ॥ -----

>> इसी लिए गांधी को लोग पाखंडी कहते हैं, अनशनोपवास के ढोंग से सत्ता हथिया कर वह भारत को पूर्ण हिंसावादी राष्ट बनाना चाहते थे.....गांधी को  पाखण्ड  वाद  का  प्रणेता  भी  कहा  जाता  है.....   

>> राष्ट्र पति जी ! दीन दरिद्रों को जीत नहीं काम चाहिए ,रोटी चाहिए किन्तु आपके भवन की भव्यता उन्हें यह देने नहीं देती.....

>>  आली-ज़नाब ! आपके बदन की ये नेहरु कट अचकन ग़रीब-गुरबा को खुराके-ख़ुर्द से भी महरूम रखती है.....

>> " धर्म की उपस्थिति मनुष्य को मनुष्य के रूप में निरूपित करती है....."
   
व्याख्या : -  दया, तप, दान व् सत्य आदि साधारण धर्म  प्रत्येक मनुष्य में उपस्थित होना चाहिए यदि यह नहीं है तब वह पशु के तुल्य है.....

>> 'तरवे नमोस्तुते'   
(वृक्ष को नमस्कार हो ) 
छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे | 
फलान्यपि परार्थाय वृक्षा : सत्पुरुषा इव || 

भावार्थ : - वृक्ष सज्जनों की भाँति स्वयं धूप में तपकर दूसरों के लिए छाया करते हैं, फलों को भी दूसरों को प्रदान कर देते हैं.....
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>> तोरि खाए फल होहि भल, तरु काटे अपराधु || 
भावार्थ : -- तुलसी दास जी कहते हैं फल तोड़कर खाना और जनमानस से यथोचित लाभ लेना उत्तम है पेड़ काटकर फल लेना और अनुचित कर लगाकर जनमानस को कष्ट देना हितकर नहीं है.....

>> मुसलमानों के आगमन से पूर्व यह देश भारत ही कहलाता था सिंधु नदी के तट पर बसने के कारण यह सिन्धुस्थान के नाम से भी प्रसिद्ध था | फिर मुसलमान आए ये 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे स्थान को स्तान कहते थे कालांतर में मुसलमानों ने अपने राज में इसे हिन्दुस्तान के नाम से सम्बोधित किया, इस शब्द युग्म का वास्तविक अर्थ है सिंधु नदी के तट पर बसने वाले लोगों का देश.....

>> लोकतंत्र में आपही भयऊ बहुतक दोस | 
अवर दोषु पुनि बोहि के गिरिहि चलत दुइ कोस || 
 भावार्थ : --  लोकतंत्र स्वयं दोषयुक्त है, अन्य जन संचालन तंत्रों के दोषों के भार को वहन कर यह अधिक दूर नहीं चल पाएगा | 



>>   अमलदार अमीरों की गरीबी नहीं जाती..,
      इस वास्ते हिन्द की बदनसीबी नहीं जाती.....

>> हम ऐसे शासन तंत्र द्वारा संचालित हो रहे हैं जहाँ क्रूरता और बर्बरता के लिए खुली छूट है और उसके प्रतिरोध के लिए दंड.....

>> एक डाकू भी अपने दल का नेतृत्व करता है.....,
एक महापुरुष ही सन्मार्ग प्रदर्शित करता हैं वह चाहे शासन में हो अथवा अनुशासन में.....

>> जनमानस के दास भए सेवा धर्म निभाउ |
भाउ रहते भाउ रहे अभाउ रहत अभाउ ||

भावार्थ : - भारतीय लोकतंत्र में मत को दान की श्रेणी में रखते हुवे जनप्रतिनिधि को जनमानस का सेवक कहा गया है | जो 


कोई प्रतिनिधि के रूप में जनमानस की सेवा करने की इच्छा रखता है वह सेवाधर्म का पालन करते हुवे उसके दुःख से दुःखी व् सुख से सुखी रहे | जहाँ ४०% से अधिक जनमानस निर्धन रेखा के नीचे जीवन यापन करता हो वहां उस प्रतिनिधि को निर्द्धंद्ध सुख उपभोग की अनुमति नहीं होनी चाहिए, अन्यथा जो अभी ४०% है उसे १०० % होने में देर नहीं लगेगी |

>> आतंकवाद से सामना करने में अपनी असफलता पर क्षतिपूर्ति का घूँघट करते ये नपुंसक सत्ताधारी प्राय: टी. वी, व् समाचार पत्रों के पीछे छुपे पाए जाते हैं.....

>> ये काम भारत की प्रभुता और अखण्डता अक्षुण्ण रखने की शपथ लेने वाले सत्ताधारियों का है |  सारे काम बुद्धिजीवी करेंगे तो ये क्या करेंगे.....?

>>विद्यमान समय की पत्रकारिता विश्वसनीय नहीं रही,  अब तो मीडिया से पत्रकारिता ढूंढनी पड़ती है, इससे प्राप्त तथ्य को जांच-परख कर ही अपना विचार व्यक्त करना चाहिए.....

>> जनमानस गधे के जैसे पैसा कमाए, फटे हुवे कच्छे बनयान में रहकर रूखी सुखी खाए और अपनी इस सारी कमाई को पंच परिधान पहनने, वायुयान में विराज विदेशों में, होटलों, भव्य भवनों, गुलछर्रे उड़ाने के लिए इन मंत्रियों के चरणों में अर्पित कर दे  तब तो वह साहूकार अन्यथा कर चोर.....क्यों.....?



>> यह कर व्यवस्था का नहीं यह नेताओं के निर्द्वंद्व सुख उपभोग का विरोध है जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के भी विरुद्ध है | यदि यह न हो तो जनमानस पर कर का भार अति न्यून हो सकता है.....

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