Friday 5 August 2016

----- ॥ टिप्पणी १० ॥ -----

>> आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक अहिंसावादी शुद्ध शाकाहारी कहा जाने वाला समाज
जीव-जंतु के प्रति क्रूर, हिंसावादी, मांस-मदिरा के व्यसनी नेता-मंत्रियों वाले भारत की अर्थ-प्रबंध के रीड़ है वह प्रत्यक्ष कर में ७०% से अधिक का योगदान देता है.....

>>  विश्व-भ्रमण की अभिरुचि व् अन्यान्य व्यक्तिगत कार्यों हेतु प्रधानमंत्री के पद का दुरुपयोग कैसे किया जाता है ये कोई भारत में देखे.....

>> जनमानस गधे के जैसे पैसा कमाए, फटे हुवे कच्छे बनयान में रहकर रूखी सुखी खाए और अपनी इस  सारी कमाई को पंच परिधान पहनने, वायुयान में विराज विदेशों में, होटलों, भव्य भवनों, गुलछर्रे उड़ाने के लिए इन मंत्रियों के चरणों में अर्पित कर दे तब तो वह साहूकार अन्यथा कर चोर.....क्यों.....?

>> प्रभात बेला समाप्त भी नहीं हुई थी,मैने शिक्षा से सम्बन्धिक कुछ्ह वस्तुएं क्रय की, ३०० रूपया का डाका पड़ गया जबकि प्रति दिवस १३००/- की आय है.....
राजू : -- हाँ ! श्रम करम किए बिन जिनको मिलिया भोजन चीर |
                    कहत सुधि सो का जानै करदाता की पीर ||
                    भावार्थ :-- सुधि जनकहते हैं : - जिनको काम कमाई किये बिना भेंट में  बढ़िया बढ़िया कपड़े,  भव्यभवन और उत्तम भोजन मिल जाता हो,  जिन्होंने देश को कभी कर नहीं दिया हो वो करदाता की पीड़ा क्या जाने.....
>> यह विडम्बना ही है जिस देश का आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते व् अहिंसा परमो धर्म: है वहां अधिकांश आवासीय विद्यालयों के भोजनगृह में बच्चों को मांस का भक्षण करवा कर हिंसा करना सिखाया जाता है और कक्षा में अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है.....

>> मादकता का व्यापार करने वाले व् कसाई घरों में हिंसा का खुला खेल खेलने वाले शासको का शासन तंत्र यदि लोकतंत्र है तो धिक्कार है ऐसे लोकतंत्र को..... 

>> "हिंसक मानसिकता अपराधिक प्रवृति को प्रोत्साहित करती है"
हमारे नगर में पास के एक होटल में मनुष्य का मांस ४००/- प्रतिकिलो की दरसे बिकता मिला | प्रतिरोध करने पर खाने वाले ने तर्क दिया ये मेरा खाने-पीने का अधिकार है |
क्रूरता परकाष्ठा को पार कर एक भययुक्त वातावरण निर्मित करती है
क्रूरता सदैव अवैध ही होती है |
पशुहिंसा की स्थिति ऐसी ही रही तब मनुष्य मनुष्य का ही भक्षण करने लगेगा ....

>> प्रतिदिन छत पर थोड़े से दाने व कसोरे में पानी रखिए फिर देखिये,
आपके घर के आसपास, कौंवा,चिड़िया,कबूतर कोयल गाने लग जाएंगी

राजू : --हाँ और आप घर बैठे कवि बन जाएंगे वो भी बड़े वाले.....
            किसी गधे की छोटे छोटे पॅकेज वाली नौकरी से तो येई ठीक है,
            समझे होशियारों.....? अब आत्माह्त्या मत करना.....

>> पोथि लिख लिख सबु कह मुए भयो न पंडत कोए ।
      ढाई आखर कर्म का कियो सो पंडित.....?

राजू :--होए.....

>> राजू बताओ किस गधे ने ऐसी पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खम्बा कहा था : -
१) इस गधे ने २) उस गधे ने ३) इस उस गधे ने ४) इन सभी गधों ने

राजू :-- मास्टर जी! किसी खच्चर ने कहा था ?

अच्छा तू क्या है
राजू :- हरेक बात पे पूछते हो की तू क्या है

ख़्वाब हूँ बस नजरों में मिरा आशियाना है.., 
नींदे-गफलत के वाबस्ता ये गरीब ख़ाना है..... 
>> किसी धर्म विशेष के अनुयायायियों के आराध्य का जन्म स्थल तीर्थ स्थल होता है.....
एक सामान्य से मंदिर अथवा मस्जिद अथवा गिरजाघर में और एक तीर्थ स्थल में अंतर है.....

>> कितने बरस हो गए 'बाप जी' को खाट भोगते..... ?
     प्रतियोगी परीक्षाओं में अब ये प्रश्न पूछा जाने लगा है,
      उत्तर पूछने वालों को भी पता नहीं है.....


>> हिन्दू उपासना पद्धति मरुस्थल को भी वनस्थली में परिवर्तित करने में सक्षम है
राजू : -- हाँ परीक्षा के लिए किसी मरुस्थल में एक शिव लिंग भर स्थापित कर दो  फिर देखो भारतीय धार्मिक नारियां  सींच सींच कर  पीपल, वट, आंवला, नीम, बेल, कदम्ब, आम आदि वृक्षों से  कैसे उसे दोहरा  करती हैं.
>> भारत में अब भी मुसलामानों का ही राज है, काले नोट  पर लाल किले को देखकर ऐसा मेरे को ही लगता है की आप लोंग को भी लगता है.....?
>> ' अपनी सत्ता -अपनी मुद्रा ' अब देश इस मुद्रा व्यवस्था के लिए भी तैयार रहे....
>> १५ अगस्त, १९४७ यह तिथि इतिहास के काले पन्नों पर सत्ता के लालचियों द्वारा भारत के टुकड़े टुकड़े कर सत्ता प्राप्ति की तिथि के रूप में उल्लखित होगी.....

>> राजू ! पता है इन दिनों प्रधान मंत्री क्या कहते फिरते हैं..,?
      राजू : -- क्या मास्टर जी.., ?
      " काश ! मैं पुरुष होता..,
      राजू : -- किन्तु मास्टर जी ! चुनाव से पहले तो वे कहते थे की मैं महापुरुष हूँ.....

>> अपनी बिरादरी के सहयोग से पड़ोसी कश्मीर को मार्ग बना कर देश में अंतरस्थ हो गया है , और ई मंत्री जी सीमापार कर प्रोटोकॉल मांगने गए थे ?  घर में ही काहे नहीं दे दिए.....

 राजू : -- हाँ तो जब शत्रु अपने आस-पास हो , तो इधर-उधर जाने की क्या आवश्यकता.....
             
प्रकृति से इतर मनुष्य की कल्पना नहीं की जा सकती पाश्चात्य देशों में वैज्ञानिकों द्वारा प्रकृति से खिलवाड़ चिंतनीय व् आनुवांशिक रूपान्तरण के नाम पर जीव-जगत पर क्रूरता सर्वथा निंदनीय है चुहे इनसे सर्वाधिक पीड़ित हैं संवेदन शील लोग इसका विरोध करें |  इनके शरीरमें गुणसूत्रों (जींस )को आरोपित कर इन्हें रोगों के वाहक बनाकर यूं ही छोड़ दिया जा रहा है जिससे भविष्य में भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है औषधियों की खोज अवश्य होनी चाहिए किन्तु ऐसे नहीं | रोगों का उपचार से अच्छा है हम रोगों के कारणों को समाप्त करें.....





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