Tuesday 3 March 2015

----- ॥ टिप्पणी ३ ॥ -----

>>   कृषि उत्पाद ही वास्तविक उत्पाद है यह कौशल से उत्पन्न किए जाते है अत: कृषि कर्म एक उद्यम है । वनोपज भी उत्पाद की श्रेणी में आते हैं चूँकि यह प्राकृतिक उत्पाद है अत: इसे उद्यम से प्राप्त उत्पाद नहीं कहा जा सकता.....

अन्य उत्पाद चूँकि संचित सम्पदा का सन्दोहन मात्र हैं अत: ऐसे सन्दोहन वास्तविक उत्पाद की श्रेणी में नहीं आते.....

>> जिस गुप्त रीति से संसद में जनहित के विरुद्ध नियम रचे जा रहे हैं उसी गुप्त रीति से कभी संविधान रचा गया था इस हेतु कि भारत का अस्तीत्व ही समाप्त हो जाए और यहाँ उपनिवेशी आ आकर बसें.....

>> हमारे एक संबंधी  के यहां लडके का ब्याह था, जीतना दान- दहेज आया उतना तो प्रीति भोज में लग गया जी !....


>> संसद  कृप्या कर अपने पी.एम. को बोलना सिखाए अन्यथा जनता ने उसे जो डिराइभरी सिखाई है  .....सब भुला देगी.....

>> दानवों को देवताओं का रमण नहीं सुहाता.....

>> यदि भारत शासन को राष्ट द्रोही षड़यंत्र का ज्ञान न हो और केंद्र तथा सीमावर्ती राज्य के सत्ताधारी एक ही हो इससे स्पष्ट होता है कि यहाँ पाकिस्तान का शासन है भारत का नहीं.....

षड़यंत्र = अनिष्ट साधन के उपाय

>> यदि किसी राष्ट्र के शासन को राष्ट द्रोही षड़यंत्र का ज्ञान न हो और केंद्र तथा सीमावर्ती राज्य के सत्ताधारी एक ही हो तो इसका अर्थ यह है कि वहां सीमावर्ती देशों का शासन है.....

षड़यंत्र = अनिष्ट साधन के उपाय


>>  हम सभी धर्मों का सम्मान करते है, और हमारी कोई सीमा-बीमा न पहले थी न अब हैं जो चाहे वो घूस गया और घूस रहा है इसका परिणाम यह हुवा कि अब एक पाकिस्तान हमारे देश के बाहर है एक अंदर दोनों के द्वारा ही सीमाओं का अतिक्रमण हो रहा है.....

>> भारत के संविधान को खाँ-ग्रेसियों का संविधान यूं ही नहीं कहते इसके अनुसार कोई भी कैसा भी कहीं का भी बिदेसी यहाँ के नेताओं को फसा के उनको ब्याह के कुछ भी बन सकता है.....

>> आय-व्यय विवरणिका के सह यह भी विवरण आवश्यक है कि आप कितना व् क्या क्या उपभोग करते हैं.....
हामरे पारा में भी नौ दस करोड़ वाले हैं वो अबतक हवाईजहाज नहीं देखे हैं.....
जिसके जैसे कर्म उसकी वैसी जाति

>> पहोमि पारे पायसा,राजा के मन भाए ।
भूरि भूरि बधाई किए, जन हित हेतु बताए ॥


भावार्थ : --पड़ोसी देश पाक ने भारत की भूमि पर अपना अधिकार स्थापित किया और सत्ताधारियों ने इस कृत्य की  भूरि भूरि  प्रशंसा की ।  अब ये इस अधिकरण्य को विधि के रूप में अंगीकृत कर इसे देश के हित में बताते फिर रहे हैं ॥

>> कश्मीर में निवासरत बहुँसँख्यक वर्ग को ये अल्पसंख्यक  कहते हैं यदि ८०% जनमत संग्रह पाक के पक्ष में हो जाए तो क्या हम कश्मीर पाक को दे देंगे.....?

यदि चयनित प्रतिनिधि बलपूर्वक अथवा जनमत संग्रह से किसी क्षेत्र की भूमि अधिग्रहित कर उस अधिकरण को भूमि स्वामी के हित में कहें तो  उक्त क्षेत्र में प्रवेश करने पर ऐसे प्रतिनिधि के प्रति  उसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए जिस प्रकार किसी देश के सीमांत देश द्वारा उसकी सीमाओं का अतिक्रमण करने पर किया जाता है.….

>> कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और पाक कांग्रेस के पेट से पैदा हुवा है.., हम इन सत्ताधारियों को पाकीसैतानी यूं ही नहीं कहते.....

>>  इण्डिया में हिन्दुओं का वर्ण कांग्रेस निर्धारित करती है, भारत में कर्म.....




राजू : -- हाँ ! ये ख़ाँ ग्रेस यदि कह दे ये नीच है.....तो है !! ये अल्पसंख्यक है.....तो है
             पाकिस्तानी तपस्वी है..... तो हैं भारतीय महमूद गजनी हैं..... तो हैं.....
             विभाजन के बखत चारखाँ थी ये, पंजख़ाँ तो बाद में हुई है, दिल्ली ने इसे छंगेज ख़ाँ बना दिया
 
>> और हमें किसी की भी अधीनता स्वीकार नहीं है.....
>> " पराधीनता सपनों में भी सुख नहीं देती"
         ----- || गोस्वामी तुलसी दास ॥ -----
          पराई पराधीनता की अपेक्षा अपनों की किंचित ही बुरी  होती है
          " अपनों की पराधीनता से परायी स्वाधीनता अच्छी होती है"
             विभीषण इसका उदाहरण है.....
>> भारतीय जनता पार्टी नहीं पाकिस्तानी जनता 'पार्टी' अर्थात पीजेपी है ये..,
      मस्जिद तोड़ते हुवे मिली थी, मंदिर तोड़ते हुवे खोई जाएगी.....

>> विद्यमान भारत में अभी भी आधा मुसलमानों का राज है  काश्मीर जैसी स्थिति इसे पूरा कर देगी फिर तो इसे अंग्रेजों के हाथों जाने में देर नहीं लगेगी.....

>> अच्छाइयों को बुराइयों के अधीन न होना.....

>>  उद्योग पतियों को बजट बनाने के लिए कितने में ठेका दिया था.....?

>>  यह धनिमन् रेखा ऐसी ही है कोई कोई तो इसके इतना ऊपर चला गया कि माँ -बाप को भी टी बी में ही दीखता है ॥

>> महात्मा पूंजीपतियों के भव्य भवनों में नहीं मिला करते, जो मिला करते हैं वो महात्मा नहीं होते.....
       ----- ॥ अज्ञात ॥ -----
>> भारतीय लौहिक यातायात का सबसे लंबा आवक-जावक केंद्र खड़गपुर है.....
>> भारतीय लौहिक यातायात एक दुधारू गाय है कुशासकों ने इसे बीमारू बना रखा है.....
     मेरे पास यदि ग्राहक अधिक है तो मैं धंधा बढ़ाऊं  गा यदि ग्राहक अपेक्षाकृत न्यून हैं तो शो बाजी.....
>> अच्छा  होगा कि पार्टियां समय रहते अपने इन फटों को सील लें और हम फटे संविधान को,
      Because "A Stitch In Time Saves Nine, N The 'A Nine Stitch In Time Saves Ninty Nine.....'

>> बाई-फाई जैसे लक्जरी आइटम फ्री में चाहिए इस दिल्ली को.….
>> मन भर की शक़्ल- तोला भर की अक़्ल.....
>>  ऐ दिल्ली ! ये यमुना है.....नदी है.....शौचालय नहीं है.....

>>>> और ये दस लखिया सूत वाले महाराज कहते हैं निर्बल की समापती हड़पने के लिए ७० % अड़ोसी-पड़ोसी से भी पूछने की आवश्यकता नहीं है .....उठा लो बीप को !!!

एक बात तो बताइये : -- लकवा मारने पर (पक्ष का आघात )  कोई खटिया पकड़ता है कि खटिया पकड़ लिए इस लिए लकवा मारता है..... ?>> इस्कूल-अस्पताल को खेतों में देखा है क्या.....?
     इस्कूल-अस्पताल चाहिए कि मालो-सिनेमा हाल.....?

>> काला बाजारू की कलाबाजारी करके हड़पो अथवा  बिना कलाबाजारी करके हड़पो
बोले तो धरती को तो हड़पना ही है.....नई.....
>> स्वतंत्रता का संग्राम इस हेतु छेड़ा गया था कि भारत में शासन तो अंग्रेजी ही हो,  अंग्रेज 'हम' हों
अभी भी अंग्रेज तो 'हम' ही हैं शेष सभी इस 'हम' के अनुयायी हैं ॥

>> कली कुँआरी के मन भाया, आया ऐसे झूम के फाग ।
         धीरे धीरे यौवन के सब, सुरंगी रंग रहे हैं जाग ॥

>> इस पी एम ने तो नरसिम्हा राव का कीर्तिमान तोड़ दिया ये दस लाख में ही बिक गया..,
वो एक करोड़ में बिका था.....किसी हर्षद मेहता ने ख़रीदा था.....

>> मनुष्य की औसत आयु उसकी संख्या पर निर्भर करती है.....
     इस्लाम, धर्म है कि जाति है.....?
    यदि यह धर्म है तो इसको जाति मानने वालों का धर्म क्या है.....?

>> राजू : -- बिना लत्ते का भारत, रत्नों का क्या करेगा..... ? सुना ही इण्डिया को साइन फिलु हो गया है.....

 >> "ऐसे-वैसे कपडे में, कुछ न कुछ तो होगा ही....." 

 >>  ये बहुमूल्य उपहार इसी भाँति से तो बनते हैं..... 

>> पुराने कर दाताओं को यह बुद्धि थी कि वो स्वेच्छाचारी शासन में टैक्स दाय  न कर उसे धर्मादा में लगाते थे, अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करते थे..... गुंडा-पार्टी का राज है अप्रत्यक्ष तो देना पड़ेगा किन्तु प्रत्यक्ष कर धर्मादा में लगे ऐसा प्रयास करें.....

बिका यो टैक्स की बिटिया की बिदाई की बेदना तो जाणण आला ही जाणों ह.....: ( 

जिका  बिटिया कोणी वो के जा ण.....


----- ॥ यतो धर्मस्ततो जय: ॥ -----

>>  यह देश की सेना का सूत्र वाक्य होना चाहिए..... दंड व्यवस्था सत्य की रक्षा के लिए होती हैं.....जय-विजय के लिए नहीं.....

 सेना के ऊपर एक वर्ष में २'२०'०००० लाख करोड़ रूपए व्यय करने वाले भारत-शासन की सत्ताधारी पार्टियां अमेरिका के राष्ट्रपति से कहती हैं..... भैया भैया हमारे देशद्रोहियों को पाकिस्तान से ला दो न.....एक टुच्चे से संत को पकड़ने में ये तैंतीस करोड़ रूपए व्यय कराती हैं.....  


राजू : -- यदि मैँ भला बन गया, तो फिर जेल में मैं ही रहूँगा.....बाक़ी सब बाहर रहेंगे.....

मैं जेल में रहूँगा..... बाक़ी सब बाहर रहेंगे तो तुम लोग कहाँ रहोगे.....? रहेंगे की नहीं रहेंगे क्या पता.....

राजू : - एक ठो भाइट हाउस है वो भी बिना हैंडिल के दरवाजे बाला 
यहां  देखो लाल पीले सफेद पता नहीं कितने हैं.....शाहों की करनी के कारण लोग थूकते हैं इनपर..... 

बात कड़वी है किन्तु सत्य है : -- किसी माता को विवशत: एक दो रात्रि के लिए कहीं जाना हो  तो क्या वह अपनी युवा होती पुत्री को उसके  पितामह, पिता अथवा उसके युवा भ्राता  के संरक्षण में छोड़ सकती है.…. ? 

नहीं.....क्यों ? क्यों कि वो उसको गर्भवती बना देंगे.....


जहाँ पनाह, जहाँ पनाह न हुवा अली बाबा हो गया बाकी तो सब चोर हैं , स्याह दौलत स्याह दौलत न हुई कारूँ का खजाना हो गई..... ये खुल जा सिमसिम बोलेगा और सिमसिम खुल जाएगी.....

राजू : -- च. च. च. च.. भारत में भी कैसे कैसे पाखंडी बाबा हैं.....

 
 शासन वही सुशासन है जहाँ  जन सामान्य शासक हो । शासन संचालक सेवक हो, और वे लौकिक सुखों के उपभोग से परहेज करें ॥

राजू : -- हाँ ! और उस सेवक अर्थात नौकर के गाली सुनने वाले कान हों और लात खाने वाला पिछवाड़ा भी हो.....किसी को नौकरी पसंद न आए तो छोड़ कर चला जाए.....

"  अभी तक जितने आए छुपछुपा के खाए । यदि तुम शपथ ग्रहण समारोहों जैसे तुच्छ आयोजनों में सौ सौ करोड़ का अपव्यय करते हुवे झुल्ला  में बैठ के खुलमखुल्ला भी खाओगे  तो तुम्हारी फटफटिया पांच का एवरेज देने लगेगी....." 

राजू : -- मास्टर जी ! पांच माने की कितना.....? 

" जितना बिना चढ़े ढुलका के देती है न उतना.....  


ये दुष्ट मंत्री  किसानों को कहते हैं, मछली पालो, खेती-वेती छोडो खेत हमें दे दो हम उन्हें उद्योग पतियों को देंगे । 

भगवान ने उक्त श्लोक इस सन्दर्भ में कहा था कि यदि तुम कोई पुस्तक लिख रहे हो तो पुरस्कार की आशा मत कर यदि तुम ऐसा करते हो तो एक दिन तुम परम पुरस्कार को प्राप्त होओगे और साहित्य के जितने भी पुरस्कार हैं वो  तुम्हारे नाम पर दिए जाएंगे । इसलिए अपना नाम अच्छा सा रखना चाहिए ' गिरधर बैष्णव ' छै ये भी कोई नाम है..... 


विदेशी बैंकों का लेखा धारक होना बुद्धिमानी है कि विदेशी बैंक होना.....?


ऐ फ़ौजी ! तनिक इनको मानव बम दिखाओ तो.....  फूट के औउर कैसे.....

 बहुंत सस्ते में आते हैं..... बस बीस लाख और एक ठो पिट्रोल पम्प लगता है.....

हवाई जहाज ! लो ये भी कोई बम है.....उसमें राष्ट्र का प्रमुख कहाँ मरता है.....

ये रही शह.....अबसे हमरी सीवाँ का अतिक्रमण मत करना.....अउर दूसर के फटे में टाँग मत अड़ाना.....समझे.....चीनी 


राजू : -- ई सासन -प्रसासन है कि दुस्सासन है.....

तुम लोग जब हवाई जहाज में उड़ते हो तब कितने मुगालते (धोखे )में रहते हो न , कि ये जो पायलट है वो पायलट है.....देखना कहीं वो घूस देने वाला लोको पायलट न हो.....

संतों की वाणी है : --
 
चार वेद षट शास्त्र में बात मिली है दोय । 
सुख दीन्हे सुख होत है, दुःख दीन्हे दुःख होए ॥ 



बिजली उद्योग - वापस जाओ, वापस जाओ.....  

गोबर गैस बनाओ, अपनी मेट्रो स्वयं चलाओ.....टिंगटांग.....

हम कौन थे, क्या  हो गए, और क्या होंगे अभी , 
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी । 
  ----- ॥ मैथिली शरण गुप्त ॥ -----

किसानों की धरती हड़प कर उसे  उद्योग पतियों के अधिकार में देते हैं भारत के ये प्रधान मंत्री गण.....

" पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् "

भावार्थ : -- भौतक जगत के सभी जीवनीय पदार्थों में ये तीन ही वास्तविक रत्न हैं : -- अन्न, जल एवं सुभाषितं अर्थात सुन्दर विचार, इन तीन की उन्नति स्थायी होता है । आर्थिक उन्नति व्यर्थ है क्योंकि यह स्थायी नहीं होती ॥ 

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