Monday 1 December 2014

----- ॥ उत्तर-काण्ड २ ४ ॥ -----

बजइहि बजौनि बिबिध बजाने । भेरी तुरही पनब निसाने ।।  
गहगह गगन धुनी घन  होई । ब्रम्हानंद मगन सब कोई ॥ 

बजे संख कतहुँ कल कूनिका । मिलि मंगल तान सुर धूनिका ॥ 

भयउ भृंग बहु रंग बिहंगे । गूँजत कूँजत चले प्रसंगे ॥ 

राग सहित छहु रागिनि जागे । सबहि पथिक ए कहत चले आगे ॥ 

दीनदया मय हे दुखहारी । ताप  सोक भय  भंजन कारी ॥

पुरुषोत्तम नाउ बिख्याता । कृपा सील सुख सम्पद दाता ॥ 
मनिक रतन धन चाहिए नाही । हम तव श्री दरसन के लाही ॥ 

जयकार करत बढ़ चले, तीर्थ हेतु बटोहि ।
सुन्दर सैल सरि सर धर मग छबि अतिसय सोहि ॥ 


मंगलवार ०२ दिसंबर, २०१४                                                                                                       

ठाउँ ठाउँ दै भजन सुनाईं । परम सुभग बिसनौ मुख गाईं ॥ 
कतहूँ भाव भगति रस साने । होइहीं गोविन्द गुन गाना ॥ 

करिहि गान बहु तान तरंगे ।बादन मंडलि मिल एक संगा ॥ 
होत राउ रंजन बहु भाँती । परे अयासी मन सुख साँती ॥ 

करिहि आपहू हरिगुन गाना । होर छिनभर कीन्ह पयाना ॥ 
आए पथ जब काँजी नरेसा । दरसे तीर तीरथ बिसेसा ॥ 

होइहि सकल अभ्युदय कारी । अभ्युदर्थि भए सेवनहारी ॥ 
तासु महिमा ब्रम्हंजन गावैं । श्रुत श्रवण सुख पवत जावैं ॥ 

जितारि श्रमजित महराउ, रहेउ कृपा निधान । 
दरसे जहाँ दीन दुखी, देइ अनुकूल दान ॥  

बुधवार, ०३ दिसंबर, २०१४                                                                                      

पुरंजन राउ सन जो आने । किए अनेक तीर्थ अस्नाने ॥ 
अभरे तन निर्मल जल चीरा । भयउ पबित अति भब्य सरीरा ॥ 

दिखे नदी एक आगिन बाढ़े । लिखे चित्र सोंह  जहँ तहँ ठाढ़े ॥ 
कलिकल सकल पाप दूरानी । बहि कलकल गहि सीतल पानी ॥ 

सालग्राम हिय अंतर धारी । करे चकित बहु चक चिन्हारी ॥ 
 बैठे पंगत मुनि समुदाई । तीर तरंगित माल सुहाई ॥ 

भूपत चतबन सुखु न समावै । मुनि सन परिचय पूछ बुझावै ॥ 
तपों निधि मुनि संग सोइहि । पावन नदी नाउ को होइहि ॥ 

जल दर्पन नभ छाए छबि, किए तिसय अल्हाद । 
जहँ धरती गगन उपबन, मेल करें संवाद ॥ 

बृहस्पतिवार, ०४ दिसंबर, २०१४                                                                                                         

मंगल गिरा मुनिरु बिद्बाने । अद्भुद तीरथ महत बखाने ॥ 
तासु नाउ गण्डकी तटिनी । सालीगाउँ अरु नारायनी ॥ 

अवस्थित पबित परबत पासू । देवासुर दुहु सेविन जासू ॥ 
निर्मल जल उत्ताल तरंगा । करिअहि पातक जूह बिभंगा ॥ 

डीआरएस प्रस मन मानस संगे । कर्म जनित जल पान प्रसंगे ॥ 
जलधृत उद्धृत बानी ताईं । दहे अखिल पातक समुदाईं ॥ 

सनातन समउ पाप बिसेखे । लिपत प्रजा जब बिरंचि देखे ॥ 
गंड अस्थल जल कन ढुलिकाए । सो कन अघहन धेना जनाए ॥ 

कंठ कलित श्रीमाल  तरंगाई तुलित तीर । 
सूर किरन कर भाल  उज्जबल मुख लिए उतरी ॥  

शुकवार, ०५ दिसंबर, २०१४                                                                                                     

 परसत पौर जो पबित सलिला । किए चूरन घन पातक सिला ॥ 
अस पूण जल परसे जो कोई । तासु  गर्भ गह  पीर न होई ॥ 

भित चक चित पाहन परगासे । जिमि रतनन सन नद तन  लासे ॥ 
चक लखनक जस लक लाखी । सोए भगवन श्री बिग्रह साखी ॥ 

पूज्य परम हित हरि प्रभूता । तासु माहि भए  प्रादुर भूता ॥ 
लिए सालगांव चक चिन्हारे । जो भगता नित पूजन कारें ॥ 
सो सद अचारी अभरन भरें । लोभ लब्धन लालस न करें ॥ 
होत बिमुख परधान परदारा । किए पूजन सो परम पुजारा ॥ 

गण्डकी सालि गाँउ एक  दुअरिका चक चीन्ह । 
यहु दोउ सौक जनम के,  पातक हरन कीन्ह ॥ 

शनिवार, ०६ दिसंबर, २०१४                                                                                                

हो चहे सहस पापाचारहि । साल गाँउ जो चरन  पखारिहि ॥ 
आचमन पयस उदर गहाइहि  । पातक समूह पार लगाइहि ॥ 

चतुर बरन मग बेद बताइहि  । सूद्रहु पदरचत मुकुति पाइहि ॥ 
महामुनि कथनत पुनि कल कूजे । सलगांव पद तिया न पूजे ॥ 

जो को तिय कल्यान चहइहौ । साल गाउँ के पद न पुजइहौ ॥ 
बैदभ हो चाहे हो सिँधुरी । सील परस सों रखिहौ दूरी ॥

परिसिहि जोउ मोह के पासा । होही सकल सदकृत के नासा ॥ 
तासु सीस गहि पातक भारी । तुरतै मिलिहीं नरक दुआरी ॥ 

ब्रम्ह बधिक होए चाहे, केतक पापाचारि । 
अस्नान पयस पान होहि , परम पदक अधिकारि ॥ 

रविवार, ०७ दिसंबर, २०१४                                                                                          

संख सलिल खँखन चक चंदन । ताम पत्र पखारित पद पयसन ॥ 
 निबेदित तुलसी हरि नाउ सन । साल गाँउ के सील संकलन ॥ 

जोग पदारथ नवल समूहा । दहन समरथ अखिल अघ जूहा ॥ 
रतन गींउँ नाऊ नर नाहा । मन्मनस् अतुलित मति लाहा ॥ 

मुनि माह रिषि गन अस्थिर चेता । श्रुति बित्त सिद्ध साँति निकेता ॥ 
वेद सार के जाननहारे । करत नाद संसूचन कारे ॥ 

जो कोई तीरथ अस्नानए । पूजत भगवन पद पय पानए ॥ 
किए भगतिहि सब बिधि मख ताईं । होत धर्म सो बरनि न जाई ॥

 भगति जोग संग पाइहि एक एक अमरित बूँद । 
बूंद बूंद भीत होइहि षडभग जुगित समूंद ॥ 

सोमवार, ०८ दिसम्बर, २०१४                                                                                             

प्रभु मूर्त सम सँख्या पूजैं । सँख्या माहि त्याजत दूजै ॥ 
अस दुइ सील पूजे न कोई । चौ छ आठहि अरचनि होई ॥ 

बिषम सँख्याहु पूजित होई । एकम पंच सत नवल सँजोई ॥ 
बिषम अंक महु बिषमक तीना । होइहि पूजन जोग बिहीना ॥

एकु प्रभो दुआरका पुरी के । लिए दूजन गण्डकी नदी के ॥ 
जहँ दोनउ एकु संगत होई । तहँ सिंधुग सुरसरि थित होई ॥ 

संकलित सिला हो जो रूखी । होत बयस सह लखी बिमूखी ॥ 
अल्पक आयु करत कुल दीना । ता सह होत कीरत  बिहीना ।। 

अर्चक आयु बर्धन कर, लखीवान किए सोए  ।  
जोइ मनोहर चिकनहर चित्ताकर्षक होए । 

मंगलवार, ०९ दिसंबर, २०१४                                                                                               

किए जो मनोकामना धन की । कुल कीरत सन बय बर्धन की ॥ 
सालगाँउ सो गेह अधारएँ  । अर्घ चरन  धर पूजन कारएँ ॥ 

एहि लोक हो चहे परलोका । पूरन काम सरूप बिलोका  ॥ 
जो मन मानस होए सुभागा । जासु चित हरि चरनन्हि लागा ॥ 

नत समउ नत करत प्रनामा । लिए रसन श्री हरिहि के नामा ॥ 
पास चाहे रहे थित छाँती । धरे सिला निअरउ किमि भाँती ॥ 

प्रान लहन जब काल पथ जोए । मरनासन मुख अस्फुरित होए ॥ 
सालगाउँ  के जो सुभ नामा  । गवने प्रानक सो हरि धामा ॥

प्राग काल  एहि सुठि बचन  कहे रहे अमरीस । 
ए तीनउ भूमण्डल पर, मोरे साखि सरूप ॥ 

बुधवार, १० दिसम्बर,२०१४                                                                                                

सालगाउँ ब्रम्हन अवधूता । होत अस्थित जहँ एक सँजूता ॥ 
अघ हरन अस रूप मैं धारा । पातक जन करतन उद्धारा ॥ 

 जो निज परिगह के हित चहहीं । साल गाँउ पद पूजन कहहीं ॥ 
होए आपहु कृतारथ सोहीं  । तासु पितुजन परम पद जोहीं ॥ 

बीतकाम मद मतसर रागी । जसु रति प्रभु चरनिन्हि लागी ॥ 
तिन तैं कथा कथत बिभासे । दिए उद्धरन प्रागितिहासे ॥ 

रहे मगध नाऊ एक देसा । धर्म निरंक कर्म अवसेसा ॥ 
तहँ एक पुलकस जाति निबासिहि । सबर कहत जन जन संभासिहि ॥

करत उत्पात बाध बधत जंतु अनेकानेक । 
पर धन डीठि धरत करें अपकृति एक ते ऐक ॥ 

पुल्कस = एक कलुष-योनि जिसकी व्युत्पत्ती ब्राम्हण व् क्षत्राणी से मानी जाती है 

बृहस्पतिवार, ११ दिसम्बर, २०१४                                                                                   

काम क्रोध सहुँ होत प्रमादा । फिरै बन बन बितथ मर्यादा ।। 
एकु समउ सोए मनुज ब्याधा । भँवरत किए बन जीवन बाधा॥ 

जान बिनु बध मोह के पासा । तासु मरनि आनइ संकासा ॥ 
धरे दंड कर जम के दूता । दरसिहि अस जस को भूता ॥ 

गालु असिक लहि लमनिहि दाढ़े । ताम केस नख नासिक बाढ़े ॥ 
लौहु पास लिए दूतक कोई । दरसिहि जो को हत चित होई ॥ 

लोहित लोचन काल कलूटे । चाप चरन बाढ़त चहुँ खूँटे ॥ 
बधिक मनुज मन ही मन काँपे । जान मुख संग को प्रभु जापे ॥ 

बन जीवन भयभीत पापी अस करे करतब । 
तेहि प्रान लो जीत,पैठत निकट दूत कहे ॥ 

शुक्रवार, १२ दिसंबर, २०१४                                                                                                 

 बन जन जीवन के हत्यारे । कबहुँ कोउ सद करम न कारे ।।  
भाव न माने भगति न माने । तुहरे मुख हरि भजन न जाने ॥  

सदकृत जग हित करे न काही । श्री नारायन सुमिरैं नाही ॥ 
छुभित  दूत ब्याध सो बोले । हरिअर हरिदै भवन हिलोले ॥ 

एहि हुँत तुअ तैं  अग्या होहिहिं। सदन राज जम पथ जोहिहिं ॥ 
देइ संकु कर हमहि अहोरे । करत घात घन लेइ बहोरे ॥ 

तुअ कहुँ कुम्भी पाक दीठाहि । रौरव नरक द्वार पैठाहि ॥ 
अस कह संकु गहै कर दूता । लिए गत उद्यत बढे अगूता ॥ 

तबहि एकु हरिचरननुचर, महात्मन तहँ आए । 
जब जम दूत कर मुद्गर, दंड पास दरसाए ॥  

पुलकस अस्थिति देख, दयाबंत भगवन भगत । 
करुना भाव बिसेख, बन जल निलयन निधि भरे ॥ 

शनिवार, १३ दिसंबर, २०१४                                                                                             

जब पुलकस हे नाथ पुकारा । नीर भरे मन मनस बिचारा ॥ 
मोर होत अपबृत्त अभागी । होए न कठिन दंड के भागी ॥ 

जम दूतक त बढ़े चहुँ खूँटे । तिन सों कोउ जुगत कर छूटें ।। 
कृपालु मुनिस्वर ए बिचार कर । दाहिन कर तल बिष्नु सिला धर ॥ 

पद परछाल पुलकस नियराए । तुलसी दल जुगित पयस पयाए ॥ 
राम नाउ गन गान बखाने । मस्तक बिष्नु बल्लभा  दाने ॥

अरु हृदय भवन हरि सिला धरे । जम दूत बहुर न गुहार करे ॥ 
पटक प्रस्तर बत पथ जोही । सिला परस पिस पिष्टक होही ॥ 

संख चक गदा पदम हरि , अनुचर धरे अगोए । 
धर्मराज के दंड सों, पुलकस मोचित होए ॥ 

रविवार, १४ दिसंबर, २०१४                                                                                                   

पापक हिआ जब निर्भय कृते । बोलि सभोचित बिनई सहिते ॥ 
कहु तुअँ केहि अग्या अधीना । अधर्म कृत बस भए दय हीना ॥ 

ए मरनासन त बिष्नउचारी । पूजनीअ पुनि बपुधर धारी ॥ 
कवन हेतु किमि हे रे आँधे । धरे दंड कर पाँसुल बाँधे ॥ 

सुनि  मुनि गिरा कहे जम दूता । किए एहि  पापक  पाप बहूता ॥ 
धर्म राज अग्या अनुहारी ॥ धर्म राज सठ पंथ जुहारी ॥ 

उन्मग किए न केहि उपकारा । हिंसालु बन जीउ पिरारा ॥ 
तिन ते महतम दूषन होई । प्रानथ पथ गत हो जो कोई ॥ 

महा बधिक तिन्ह बाधित करे अनेको बार । 
पर सम्पद कर आपुना, दीठ धरे परदार ॥ 

सोमवार, १५ दिसंबर, २०१४                                                                                                 

करे दोष खल सबहि प्रकारा । नत समु दिस नाथ गुहारा ।। 
दिए धरनि दुःख सकल सुख भोगे । एहि सठ अहहि न मोचन जोगे ॥ 

तब बिष्नु दूत भए अभिभूता । बोले सप्रेम हे जमदूता ॥ 
होए चहे को केत पिरारे ।  सिला परस मह पातक जारे ॥ 

लगे ज्वाल कनक समतूला । दहे तासु सकलित अघ  पूला ॥ 
रम नाम कहि कानन जासू । नेसए पाप तेहि बिधि तासू ।। 

जान बिनु तुम्ह  भयउ अधीरा । अजहुँ पबित  भए तासु सरीरा । 
तासु परस को सुभगहि पावा । ए पारस मनि पाप दूरावा ॥ 

ऐतक  कहत बिष्नु दूत, अधर दुआरि लगाए । 
जम दूत फिरै जम सदन, सकल प्रसंग सुनाए ॥  





   
















  







  


















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