दिल के दोज़े-दराजा में इक दर्दे-ग़म का दरिया है..,
पलकों की फलक परवाजों पे कतरा होना पड़ता है..,
अर्शे-जमीं हो जाने को फ़र्शे-ख़ाक बेचैन होती है..,
नज़रों के दर-पेश-दरवाजों पे ज़र्रा होना पड़ता है..,
आहों उफतादों की लहरें फ़र्के-फ़राज उफनती हैं..,
बल्सुम सियाही कनारों पे सजदा होना पड़ता है..,
बुर्जे-बुलंद सी आवाजें सैलाबी तमन्ना रखती है..,
चश्मे-रुदाद की आबे-ऱौ में दर्रा होना पड़ता है..,
मुबतिल मजमून से जज्बे जब फ़र्राटे भरते हैं..,
नफ़्स कशीदे-नजीरे-नज़र, फ़र्दा होना पड़ता है..,
मरसिया ख्वाँ की महफिल शम्मे-सोजाँ रौशन है..,
चाक जजीरों के चश्मे-जद पर्दा होना पड़ता है..,
बरहमे-अकस मौजे-बर वक्त कहरे-इलाही चाहे..,
सदीयों के नूर नज़ारों को लम्हा होना पड़ता है.....
पलकों की फलक परवाजों पे कतरा होना पड़ता है..,
अर्शे-जमीं हो जाने को फ़र्शे-ख़ाक बेचैन होती है..,
नज़रों के दर-पेश-दरवाजों पे ज़र्रा होना पड़ता है..,
आहों उफतादों की लहरें फ़र्के-फ़राज उफनती हैं..,
बल्सुम सियाही कनारों पे सजदा होना पड़ता है..,
बुर्जे-बुलंद सी आवाजें सैलाबी तमन्ना रखती है..,
चश्मे-रुदाद की आबे-ऱौ में दर्रा होना पड़ता है..,
मुबतिल मजमून से जज्बे जब फ़र्राटे भरते हैं..,
नफ़्स कशीदे-नजीरे-नज़र, फ़र्दा होना पड़ता है..,
मरसिया ख्वाँ की महफिल शम्मे-सोजाँ रौशन है..,
चाक जजीरों के चश्मे-जद पर्दा होना पड़ता है..,
बरहमे-अकस मौजे-बर वक्त कहरे-इलाही चाहे..,
सदीयों के नूर नज़ारों को लम्हा होना पड़ता है.....
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