Monday 15 October 2012

----- || न्याय का व्यवसाय ।। -----

भ्रष्टाचार रूपी वृक्ष का अदृश्य मूल न्यायालयों में रोपित है
शासन-प्रशासन इसका तना व शाखाएं हैं इसके तने को हिलाने
अथवा किसी शाखा को काटने भर से यह वृक्ष उखड़ने वाला नहीं है..,


यदि सर्वोच्च न्यायालय से लेकर उच्च व निम्न न्यायालयों के कंठ को
 पंजों में पकड़ कर कसा  जाए तो  शासन-प्रशासन के  भ्रष्टाचार  रूपी
 उदराधारित नाभि कुंड का अमृत स्वत: ही प्राप्त हो जाएगा..,


ऐसे बहुंत से लेखक हैं जिनकी आजीविका लेखनी पर ही आधारित है
तथापि ये लेखनी की शक्ति से अपरिचित हैं..,

बहुंत से संवेदनशील विषय ऐसे हैं जिनसे जनसामान्य की संवेदनाये सीधे
संयोजित हैं किन्तु ये लेख्ननियाँ इन विषयों पर लिखने हेतु सदैव भयग्रस्त रहती है..,


भ्रष्टाचारी धन्ना के लिए जहाँ न्यायालय में 'देखना' सरल है,
वहीँ सड़क पर खड़े निर्धन मतदाता के लिए न्यायालय में
'दिखाना' कठिन है, यहीं पर संविधान की प्रस्तावना छिन्न-भिन्न
हो जाती है.....

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